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Originally Posted by rajat vynar
सच तो यह है, दीप जी यदि आपका अपना न्यूज़ चैनल होता तो क्या आप विज्ञापन दिखाना जनहित में बन्द कर देते? खैरात में न्यूज बाँटकर क्या आप कटोरा लेकर भीख माँगना पसन्द करते? क्या आपको पता है सेटैलाइट का किराया क्या है? स्टाफ की सेलरी क्या है?
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सही बात है आपकी रजत जी। लेकिन अब ईस दशक में हर एक चीझ का अतिरेक हो गया है। टीवी चैनल का भी और विज्ञापनों का भी। अगर ढंग का न्यूझ चैनल हो और उस पर विज्ञापन कम दिखाए जाने लगे...तो विज्ञापन देने वाले ज्यादा भाव दे कर विज्ञापन दिखलाएंगे।
एक तो ईन न्यूझ चैनलों मे एक दुसरे को पछाड़ने की होड लगी हुई है। सभी को सनसनीखेज तरीकों से समाचार देने की आदत हो गई है। भड़काउ और डराने वाले समाचार ही ज्यादातर दिखाए जाते है । न्यूज चैनल के अपने कुछ निती-नियम होतें है । "जो मिला, परोस दिया" वाली निती अगर चलेगी तो व्हाट्सेप/एमएमएस और न्युझ चैनल में क्या फर्क रह जाएगा?