कल रात मैं जागते हुए फिल्में बनाने के सपने देख रहा था। मैने जैसे ही अनुराग कश्यप के ओफिस पहूंचा उन्हों ने मुझे सिर्फ पांच मिनिट दिए। तिग्मांशु धुलिया भी वहां बैठे थे।
मैने बिना कुछ कहे अपने मैले थैले से झेरोक्ष कोपी रख दी।
"सर, बचपन से यह नोवेल पढ रहा हुं...ईसी कहानी पर फिल्म बनाना चाहता हुं।"
अनुराग को कई लोग मिलने आतें होंगे। हीरो-हीरोईन, एकस्ट्रा, डान्सर, आसिस्टन्ट्स डिरेक्टर वगैरह बनने की ख्वाहिश में। कई सो लोग। वह मुझमें दिलचस्पी क्युं लेते फिर?
"मेर पास पांच मिनिट है तुम्हारे लिए।" अनुराग ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा था।
"मै सिर्फ दो मिनट लुंगा सर। " मैने उनकी दिलचस्पी जीतेने के लिए यह डाईलोग बोल गया। "मुझे जो कहना है मै पहले से ईस नोवल के कवर पर शोर्ट में लिख कर लाया हुं। अगर आप ही ईस पर से एक फिल्म बना लेंगे तो मज़ा आ जाएआ। "
ईस मजा शब्द पर अनुराग शायद भडका। "मैं मज़े करने के लिए फिल्में नहीं बनाता हुं दीप...या जो भी नाम है। "
"मै अपने मज़े की बात नहीं कर रहा था सर" मै धीमे से फुसफुसाया।
"क्या?" अनुराग फिर भडका।
"मै एक क्रिएटर के मज़े की बात कर रहा था। क्रिएटर जैसे सैसे अपनी रचना...."
"ठीक है ठीक है...तुम्हारे दो मिनिट खत्म हुए?" तिग्मांशु। उसे बाहर बैठे और भी लोग निपटाने थे।
"एक मिनट ही बाकी है।" मैने नजर अपनी कलाई घडी पर जमा दी।
"मेरे पास यह कहानी है। जैसे आप कोई मास्टर पीस बनाना चाहते हो, मै भी एक मास्टर पीस बनाना चाहता हुं। मुझे कोई अनुभव तो नहीं लेकिन अगर एक अच्छा कैमेरामेन और एक लाईटमैन दे दें....तो.....तो मैं ईस कुर्सी से भी एक्टींग करवा सकता हुं। "
"आगे बोलो। " अनुराग बोले, "खत्म करो अब।"
" देखिए यह कहानी मैं यहां छोड कर जाउंगा। ईस के कवर पर मैने लिखा है की अगर आपने यह नोवेल के पंद्रह-बीस पन्ने भी पढ लिए तो आप ईसे पुरी करने पर मजबुर हो जाएंगे। आप ढाई-तीन घंटे पढ कर पुरा के बाद आप सोचेंगे की ईस पर से फिल्म तो बननी ही चाहिए।" मेरी नजर अभी भी घडी पर थी।
"मेरे सिर्फ तीस सेकंड्स बाकी है...आपके वह तीन घंटे मै बचा सकता हुं, सिर्फ दस मिनिट ओर ले कर। मै शोर्ट में आपको कहानी सुना देता हुं" मैं घडी देख बोले जा रहा था।""
"दस, नौ, आठ..सात...जल्दी किजिए सर!!!" मै जाने के लिए थैला समेटने लगा।
"अच्छा सुना दो भई! कहानी सुना दो...दस मिनिट ओर सही। " अनुराग ने कह तो दिया लेकिन तिग्मांशु खफा सा नज़र आने लगा।
"ग्रेट!" मै जेब से एक चॉक निकाल कर टेबल बांई और एक सिक्के सा गोल बनाया.....यह है सत्यप्रकाश...
वे दोनो मेरी कहानी सुनने लगे। मेरे पास सिर्फ दस मिनिट थे।
(तो यह था मेरा दिवास्वप्न...आगे सच मैं मै आरोप की कहानी संक्षेप मैं बता रहा हुं!)