Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
पादुका पुराण
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पैत्रिक गाँव जोड़ासांको में अक्सर साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित होती रहतीं. शरच्चंद्र बाबु भी इनमे भाग लिया करते थे. कहते हैं कि हर बार किसी न किसी का जूता खो जाता था. एक बार शरत बाबु नया जूता पहन कर आये. इस डर से कि कहीं यह चोरी न चला जाये, उन्होंने जूते को अखबार में लपेट कर हाथ में ले लिया. रवि बाबू ने उनसे पूछ लिया, “यह तुम्हारे हाथ में क्या है?”
शरद बाबु को कुछ उत्तर देते न बना. वह चुप चाप सिर झुकाए खड़े रहे. रवि बाबु बोले, “लगता है कोई पुस्तक लिये खड़े हो? शायद यह ‘पादुका पुराण’ है?”
शरद बाबु हैरान हो गये! तभी सभा में एक ठहाका गूँज उठा.
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