Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
बरात विदा हो कर लड़के के गाँव की ओर चल पड़ी. रास्ता लम्बा था. बैलगाड़ियों व रथों (सजे हुए इक्के तांगे) पर बराती और सामान आदि से लदा हुआ यह काफिला चला जा रहा था. लड़का और लडकी जिस रथ पर चले जा रहे थे उससे पीछे वाली बैलगाड़ी पर सामान लदा हुआ था जिसमे से खड़-खड़ और धड़-धड़ करती बड़ी आवाजे आ रहीं थी क्योंकि सामान ही इस ढंग से लादा गया था कि इधर से उधर और उधर से इधर लुढ़क रहा था. लड़के से यह शोर ज्यादा सहन न हो सका तो उतर कर उस गाड़ी के पास पहुँचा और गाड़ीवान के दो चार हाथ जमा दिए और बोला कि ऐसे सामान बाँधा व लादा जाता है? इतना कह कर वह ओने रथ पर आ कर दुल्हन के साथ बैठ गया. काफिला चलता जा रहा था. चलते चलते युवक को महसूस हुआ जैसे उनका रथ बाहुत धीमी गति से चल रहा हो. उसे पहले झुंझलाहट हुयी, फिर गुस्सा आ गया. उसने आव देखा न ताव, गाड़ी चलाने वाले को दो-तीन झापड़ रसीद कर दिये.
खरामा खरामा काफिला अपने गाँव जा पहुंचा. घर पहुँच कर दूल्हा दुल्हन दोनों को एक अलग कमरे में बिठा दिया गया तो युवक बड़े दयनीय स्वर में अपनी पत्नि से बोला,
“देख, मैंने वचन दिया है कि मैं आजीवन तेरा गुलाम बन के रहूँगा और तेरी हर आज्ञा का पालन करूंगा, क्योंकि तू अपने माँ बाप की लाड़ली बेटी है. लेकिन मुझे इतना बता दे कि मुझे किस तरह से आज्ञा पूरी करनी है. हर चीज मुझे अच्छी प्रकार समझा दे ताकि हुकम की तामील में किसी प्रकार की गफलत न होने पाये”.
उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसकी पत्नि ने उसे निर्देश देने के स्थान पर उसके पाँव पकड़ लिए और बोली कि मुझे माफ़ कर दीजिये. मैं आपको कोई आज्ञा देने के योग्य नहीं बल्कि मुझे ही अपनी सेवा करने का मौका दीजिये. लड़का शशोपंज में पड़ गया. उसने दोबारा से अपनी बात का मतलब समझाया. युवती ने भी कह दिया कि आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी.
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