11-04-2013, 05:33 PM
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#22
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Re: मोती और माणिक्य
मेरे हाथों से प्रसाद भी, बिखर गया हा! सब का सब
हाय! अभागी बेटी तुझ तक, कैसे पहुँच सके यह अब।
मैंने उनसे कहा - दण्ड दो, मुझे मार कर ठुकरा कर
बस यह एक फूल कोई भी, दो बच्ची को ले जाकर।
न्यायालय ले गए मुझे वे, सात दिवस का दण्ड-विधान
मुझको हुआ हुआ था मुझसे, देवी का महान अपमान!
मैंने स्वीकृत किया दण्ड वह, शीश झुकाकर चुप ही रह
उस असीम अभियोग दोष का, क्या उत्तर देता क्या कह?
सात रोज ही रहा जेल में, या कि वहाँ सदियाँ बीतीं
अविस्श्रान्त बरसा करके भी, आँखें तनिक नहीं रीतीं।
कैदी कहते - "अरे मूर्ख क्यों, ममता थी मन्दिर पर ही?
पास वहाँ मसजिद भी तो थी, दूर न था गिरजाघर भी।"
कैसे उनको समझाता मैं, वहाँ गया था क्या सुख से
देवी का प्रसाद चाहा था, बेटी ने अपने मुख से।
दण्ड भोग कर जब मैं छूटा, पैर न उठते थे घर को
पीछे ठेल रहा था कोई, भय-जर्जर तनु पंजर को।
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