11-04-2013, 06:02 PM
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Re: मोती और माणिक्य
कवि परिचय:
नज़ीर अकबराबादी का जन्म आगरा शहर में 1735 में हुआ था. इनका वास्तविक नाम वली मोहम्मद था. इन्होने आगरा के उर्दू फ़ारसी के नामचीन विद्वानों से तालीम हासिल की. वे राह चलते नज्मे सुनाने के लिए भी मशहूर थे. कहा आता है कि टट्टू पर जाते नज़ीर को कोई दुकानदार रोक लेता और अपने रोजगार के बारे में कविता सुनाने की फरमाइश कर बैठता. इस प्रकार लोग अपना माल बेचने के लिए नज़ीर की कविताओं का सहारा लिया करते थे. भिश्ती, ककड़ी बेचने वाला, बिसाती और यहाँ तक कि वहां की गाने वालियां तक नज़ीर के दीवाने थे. वे हिन्दू-मुस्लिम त्यौहारों में बहुत रूचि लेते और उनमे बढ़ चढ़ कर भाग लेते थे. उनका होली वर्णन पढ़ने लायक है.
नज़ीर दुनिया के रंग में रंगे हुए शायर थे. इनकी शायरी में दुनियावालों का हंसना बोलना, चलना फिरना, दुःख दर्द, दिखावा आदि रूप सहज भाषा में अभिव्यक्त होते हैं. नज़ीर की कविताएं हमारी राष्ट्रीय एकता और गंगा जमुनी तहजीब की जिंदा मिसाल हैं. नज़ीर अपनी कविताओं में हंसी-विनोद-ठिठोली करते हैं, मित्रवत सलाह देते हैं और जीवन की समालोचना करते हैं.
“सब ठाठ पड़ा रह जाएगा” नामक कविता में कवि ने जीवन की कटु सच्चाइयों को बयान किया है. ”आदमी नामा” नामक कविता में नज़ीर ने सृष्टि की सबसे नायाब कृति यानि आदमी की अच्छाइयों, बुराइयों और संभावनाओं से परिचित कराया है. संसार को और भी सुन्दर कैसे बनाया जाए, इस पर भी विचार प्रकट किये गए हैं. सन 1830 में उनकी मृत्यु हो गई. उनका ज़िक्र आता है तो निम्नलिखित शब्द बे-साख्ता मुंह से निकल जाते है:
कहने को था नज़ीर, मगर बेनजीर था.
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