11-04-2013, 06:09 PM
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#27
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Re: मोती और माणिक्य
ज़र की जो मुहब्बत तुझे पड़ जायेगी बाबा.
ज़र की जो मुहब्बत तुझे पड़ जायेगी बाबा.
दुःख इसमें तेरी रूह बहुत पाएगी बाबा.
गर नेक कहाता है, कर जाये कुछ अहसान.
हिन्दू को खिला पूरी, मुसलमां को खिला नान.
उससे यही बेहतर है, तू ही इसे खा जा,
बेटों को रफीकों को, अजीजों को खिला जा.
सब रूबरू अपने, मये-इशरत में उड़ा जा,
फिर शौक से हँसता हुआ जन्नत को चला जा.
वरना तुझे हर दुःख में ये फंसवाएगी बाबा.
दुःख इसमें तेरी रूह बहुत पाएगी बाबा.
तू लाख अगर माल के संदूक भरेगा,
है ये तो यकीं, आखिरश इक दिन तू मरेगा,
फिर बाद तेरे इसपे जो कोई हाथ धरेगा,
और नाच, मज़ा देखेगा और ऐश करेगा,
और रूह तेरी कब्र में चिल्लाएगी बाबा.
दुःख इसमें तेरी रूह बहुत पाएगी बाबा.
(शायर: नज़ीर अकबराबादी)
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