11-04-2013, 06:13 PM
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#28
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Re: मोती और माणिक्य
जिस पे आती है मुफ़लिसी
जब आदमी के हाल पे आती है मुफ़लिसी.
किस किस तरह से उसको सताती है मुफ़लिसी.
प्यासा तमाम रोज़ बिठाती है मुफ़लिसी,
भूका तमाम रात सुलाती है मुफ़लिसी,
ये दुःख वो जाने जिस पे आती है मुफ़लिसी.
बीबी की नथ न लड़कों के हाथों कड़े रहे,
कपड़े मियाँ के बनिए के घर में पड़े रहे,
जब कड़ियाँ बिक गई तो खंडर में पड़े रहे,
जंजीर न किवाड़ न पत्थर गड़े रहे,
आखिर को ईंट ईंट खुदाती है मुफ़लिसी.
जब आदमी के हाल पे आती है मुफ़लिसी.
किस किस तरह से उसको सताती है मुफ़लिसी.
(शायर: नज़ीर अकबराबादी)
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है वो भी आदमी
दुनिया में पादशाह है सो वह भी आदमी
और मुफलिसों-गदा है सो वह भी आदमी
(शायर: नज़ीर अकबराबादी)
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