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jai_bhardwaj
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Default Re: कहानी : निशिगंधा - अनिल कान्त

बीते क्षणों में वह कभी बाहर की दुनिया को देखता तो कभी सामने बैठी उस खूबसूरत सहयात्री को । जो अब भी उतनी ही दिलचस्पी के साथ किताब पढ़ रही थी । जिस के बाहरी आवरण पर अनूठी चित्रकला का प्रदर्शन करते हुए, कुछ आकृतियाँ नज़र आ रही थीं । प्रथम दृष्टि में वह हिंदी की किताब जान पड़ती थी । तभी चाय वाले की आवाज़ सुनाई दी "चाय, चाय, चाय" । उसके पास में आते ही, आदित्य ने कहा "दोस्त एक चाय देना" । कप को हाथ में थामते हुए आदित्य ने पर्स निकाला तो याद हो आया कि सभी छुट्टे तो खर्च हो चुके थे और अब उसके पास केवल पाँच सौ के नोट हैं । वह मुस्कुराते हुए नोट को चाय वाले को थमाता है ।

-"क्या साहब सुबह-सुबह मैं ही मजाक के लिए मिला हूँ" चाय वाला प्रतिक्रिया देता है ।

-दोस्त छुट्टे तो नहीं हैं मेरे पास ।

-देख लो साहब होंगे या किसी से करा लीजिए ।

-"अब इस वक़्त कहाँ से करा लूँ ? मैडम आपके पास होंगे पाँच सौ के छुट्टे ?" सामने बैठी लड़की से पूँछते हुए आदित्य ने कहा ।

-"नहीं मेरे पास तो नहीं हैं" उसने किताब से नज़रें उठाते हुए कहा ।

-"ठीक है दोस्त तो फिर तुम अपनी यह चाय वापस रखो" आदित्य ने कप आगे बढाते हुए कहा ।

-"अरे आप चाय पी लीजिए । मैं पैसे दिए देती हूँ । आप बाद में मुझे दे देना ।" लड़की ने आदित्य को देखते हुए कहा ।

-"जी शुक्रिया" कहते हुए आदित्य ने कप को अपने पास रख लिया ।

लड़की पुनः अपनी किताब में व्यस्त हो चली । घडी नागपुर के आने का वक़्त बता रही थी । हालाँकि लगता नहीं था कि नागपुर अभी कुछ ही मिनटों में आ पहुँचेगा । और आते ही संतरे की सुगंध फैला देगा । जहाँ दौड़ते हुए लोग खाने-पीने की वस्तुएँ खरीदेंगे । और ट्रेन कुछ देर सुस्ता लेगी ।

-"शुक्रिया, आपके कारण चाय पी रहा हूँ " आदित्य ने चाय की चुस्की भरते हुए कहा ।

लड़की प्रत्युतर में हौले से मुस्कुरा दी और पुनः पढने लगी ।

-"आप हिंदी की किताबों को पढने का शौक रखती हैं" आदित्य ने प्रश्न पूँछने के लहजे में कहा ।

-"जी, क्यों ? हिंदी में कोई बुराई नज़र आती है आपको" लड़की ने प्रत्युतर में कहा ।

-नहीं, बुराई तो नहीं किन्तु आज के समय में जब सभी अंग्रेजी की ओर भाग रहे हैं । और उसे पढना और बोलना
अपनी समृद्धि समझते हैं । आप अरसे बाद मिली हैं जो हिंदी का कोई उपन्यास पढ़ते हुए दिखी हैं ।

-"जी, कम से कम मैं तो ऐसा नहीं सोचती । मुझे हिंदी से अथाह प्रेम है । हिंदी में कहानियाँ, कवितायें पढना मुझे अच्छा लगता है । हाँ लेकिन इसका अर्थ ये भी नहीं है कि मैं अंग्रेजी में कुछ नहीं पढ़ती । उसमें भी मुझे दिलचस्पी है ।" लड़की ने अपना पक्ष रखते हुए कहा ।

-"क्या कहा ? अथाह प्रेम । अरे वाह आप तो शुद्ध हिंदी का प्रयोग करती हैं ।" आदित्य ने उसकी इस बात पर कहा ।

-"बस पढ़कर ही सीखा है" लड़की मुस्कुराते हुए बोली ।

-"वाह, आप तो बहुत बड़ी हिंदी प्रेमी निकलीं" आदित्य मुस्कुराते हुए बोला ।

- आप सिर्फ बातें बनाना जानते हैं या कुछ और भी करते हैं ?

आदित्य उसकी इस बात पर पुनः मुस्कुरा दिया और बोला "बस यही समझ लीजिए"

-क्यों आप कोई नेता हैं जो केवल बातें बनाना जानते हैं ।

आदित्य उसकी इस बात पर खिलखिला कर हँस दिया और कप को खिड़की के रास्ते बाहर फैंकते हुए बोला "वैसे जिसे आप पढ़ रही हैं । वह काम मैं भी कर सकता हूँ ।"

-क्या, पढ़ सकते हैं ?

-नहीं, लिख सकता हूँ ।

-अच्छा, तो आप लेखक हैं ?

-नहीं, लेखक तो नहीं किन्तु कभी-कभी लिख लेता हूँ ।

-अच्छा, सच में ? फिर तो बड़े काम के आदमी निकले आप । क्या लिखते हैं आप ?

-कुछ खास नहीं, बस शब्दों को आपस में प्रेम करना सिखाता हूँ ।

-मतलब ?

-"मतलब कि कभी-कभी कवितायें लिख लेता हूँ " आदित्य ने उत्तर दिया ।

-"अरे वाह, कैसी कवितायें लिखते हैं आप ? " लड़की गहरी दिलचस्पी लेते हुए बोली ।

-कोई ख़ास विषय नहीं, बस यूँ, जब मन में जो आया बस वही लिख देता हूँ ।

-"अच्छा, तो फिर सुनाइये न, अपना लिखा कुछ" लड़की खुश होते हुए बोली ।

-अच्छा ठीक हैं सुनाता हूँ किन्तु आपको एक वादा करना होगा कि आप बदले में मुझे चाय पिलायेंगी । अभी तक मेरे
पास छुट्टे नहीं आये हैं ।

-इस बात पर वह मुस्कुरा गयी और बोली "जी बिल्कुल, पक्का"
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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