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Old 11-09-2013, 07:14 PM   #6
jai_bhardwaj
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Default Re: कहानी : निशिगंधा - अनिल कान्त

-"तो आप करते क्या हैं ?" लड़की ने आदित्य से पूँछा ।

-"जी कुछ खास नहीं । एक सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर हूँ ।" आदित्य ने खिड़की के बाहर से ध्यान भीतर लाते हुए कहा ।

-तो आप सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं ?

-जी

-कहाँ ?

-दिल्ली में काम करता हूँ और प्रोजेक्ट के सिलसिले में हैदराबाद गया था ।

-"एक बात, जो मैं आपसे कम से कम अवश्य पूँछना चाहूँगा" आदित्य पूरी तरह वहाँ आते हुए बोला ।

-क्या ?

-यही कि आपका नाम क्या है ?

-वो इस बात पर मुस्कुरा गयी और बोली "निशा चौहान और मैं पंजाब नेशनल बैंक में असिस्टेंट मैनेजर हूँ । काम के
सिलसिले में हैदराबाद गयी थी और अभी भोपाल में ही कार्यरत हूँ ।"

-अरे वाह । इसका मतलब में एक बैंक मैनेजर के सामने बैठा हूँ ।

वो हँस दी और बोली "बातें बनाना तो कोई आप से सीखे । अरे हाँ आपका नाम क्या है ? मैं तो पूँछना ही भूल गयी ।"

-आदित्य

एक पल के लिए लगा उसने नाम दोहराया हो....आदित्य

बाद के भोपाल तक के सफ़र में दोनों के मध्य ढेर सारी बातें हुईं । जिनमें एक दूसरे की पसंद, फिल्मों, कहानियों, लेखकों और परिवार के सदस्यों से जान-पहचान जैसे विषय शामिल थे । और उसी दौरान आदित्य ने निशा के लिए कविता लिखी थी । जिसने उसे इतना प्रभावित किया कि उसने आदित्य से उसकी डायरी में कैद चन्द कविताओं की माँग कर ली । जिसे आदित्य ने ख़ुशी-ख़ुशी दूसरे पन्नों पर उतार कर दे दिया ।

-"और हाँ, आपका ऑटोग्राफ और पता भी" कविताओं को लेते हुए निशा ने कहा ।

-वो भला क्यों ?

-अरे, इतना हक़ तो बनता है आपकी प्रशंसिका का ।

प्रत्युतर में मुस्कुराते हुए, आदित्य ने कविताओं के अंत में पुनः अपनी कलम चला दी । जिसकी स्याही में आदित्य का पता भी शामिल था ।

सुखद समय जल्दी ही व्यतीत हो चला था और कुछ ही समय दूर, भोपाल स्टेशन प्रतीक्षा में था । ट्रेन सुस्त हो चली थी । मालूम होता था कि भोपाल आ पहुँचा । निशा ने अपना सूटकेस बाहर की ओर निकाला और हाथ आगे बढाते हुए बोली....अच्छा चलती हूँ....आदित्य उठ खड़ा हुआ...रुकिए मैं आपको बाहर तक छोड़ देता हूँ । आदित्य ने उसका सूटकेस बाहर निकाला और दरवाजे के साथ ही खड़ा हो गया । निशा के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी....देखो तो वक़्त का पता ही नहीं चला....प्रत्युतर में आदित्य भी मुस्कुरा दिया । फिर निशा ने हाथ आगे बढाया....अच्छा तो अब चलती हूँ । आदित्य ने हाथ मिलाते हुए कहा "अपना ख्याल रखना" ।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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