View Single Post
Old 11-09-2013, 07:18 PM   #10
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: कहानी : निशिगंधा - अनिल कान्त

अबके निशा जो भोपाल गयी तो पीछे छोड़ गयी, भविष्य के सपने और मीठी यादें । दोनों ने आने वाले समय में शादी करने का निर्णय लिया था । भविष्य से बेखबर, वे वर्तमान में खुश थे । इस दृढ विश्वास के साथ कि निशा अपने पिताजी को अंतर्जातीय विवाह के लिए मना लेगी । दोनों अपनी पूरी जिंदगी, एक दूजे के साथ बिताने का हिसाब कर चुके थे ।

उनके प्यार को लगभग एक साल बीतने को हो आया था । और इस बीच वे कई बार एक-दूसरे से मिल चुके थे । मौका पाते ही निशा दिल्ली चली आती या सप्ताहांत में आदित्य भोपाल चला जाता । दिन बड़े सुकून भरे थे । एहसास होता था कि अभी तो शुरू हुए हैं । अभी तो एक-दूजे का हाथ थामा है । अभी तो सपने बुनने शुरू किये हैं ।

सुखद समय का बहुत जल्द ही अंत हो गया । जब निशा ने आदित्य के बारे में, अपने पिताजी को बताया । उन्होंने साफ़ कर दिया था कि यह शादी किसी भी हालत में नहीं हो सकती । निशा भी कहाँ हार मानने वाली थी । उसने अपना स्थानांतरण दिल्ली करा लिया । और घर पर साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया कि चाहे जो हो जाए वह आदित्य से ही शादी करेगी । वह धीमे-धीमे अपने घर से विच्छेदित सी हो गयी थी । तभी उसकी माँ ने उसे एक बार घर आने को कहा । और वह माँ के लिए भोपाल चली गयी ।

उस रात निशा के पिताजी ने किसी लड़के का फोटो दिखा कर, जबरन शादी करने का दबाव बनाया । निशा ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि उसके परिवार के सदस्य ऐसा करेंगे । उसने सुबह होते ही दिल्ली जाने के, अपने इरादे के बारे में बता दिया । उसके पिताजी ने कुछ नहीं कहा । और वह अपने पीछे रोती, बिलखती माँ को छोड़ कर चली आई ।

दो रोज़ बाद भोपाल से माँ का फ़ोन आया कि पिताजी अस्पताल में भर्ती हैं । उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की है । खबर पाते ही निशा ने आदित्य को सब बताया और भोपाल को रवाना हो गयी । अस्पताल में पिताजी बेबस, लाचार प्रतीत होते थे । लगता था कि दान में उसके हिस्से की खुशियाँ माँगना चाहते हों ।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote