Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by rajnish manga
ये क्या किस्सा है जब अरमान दुनिया के निकलते हैं
हमारे वास्ते ही किस लिये........हसरत के दिन आये
(बालस्वरूप राही)
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यक़ीनन तेरे दामन पर न कोई दाग है फिर भी
शराफ़त के लबादे का उतर जाना ही बेहतर है
"दीक्षित दनकौरी".
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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