Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by bindujain
नीर की गठरी में वो फिर आग भर कर आ गए
देखिये आकाश में बादल उभर कर आ गए
कुंवर बेचैन
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एक बंजर ज़मीं के सीने में
मैंने कुछ आसमां उगाये थे
सिर्फ दो घूँट प्यास की ख़ातिर
उम्र भर धूप में नहाए थे
(राहत इंदौरी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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