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Originally Posted by rajnish manga
* संस्कृत की एक सूक्ति पर नज़र डालते है. क्या आपको यह पढ़ने के बाद कुछ और कहावते नहीं याद आ रहीं?
दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)
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दूर के ढोल सुहावने होते हैं .
ढोल के भीतर पोल
हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .