Re: ब्लॉग वाणी
जनता की पसंद का पता लगाया जाए
-अनूप शुक्ल
चुनाव आने वाले हैं। पार्टियां चुनाव घोषणापत्र तैयार कर रही हैं। मुफ्त में बांटे जाने वाला सामान अभी तय नहीं हुआ है। मुफ्तिया सामान की घोषणा के बिना चुनाव घोषणा पत्र उसी तरह सूना लगता है जैसे बिना घोटाले की कोई स्कीम। सामान तय करने के लिए पार्टी की शिखर बैठक बुलाई गयी है। गहन चिंतन चल रहा है। पिछली बार लैपटॉप दिया था। इस बार उसके लिए बिजली का वायदा कर सकते हैं। एक ने सुझाव दिया। अरे भाई,लैपटॉप अगले चुनाव तक बचेंगे क्या? जिसको दिया उसने बेच दिया दूसरे को। जो बचे होंगे वे अगले चुनाव तक खराब हो चुके होंगे। लैपटॉप कंपनी बड़ी खच्चर निकली। चंदा भी नहीं दिया पूरा और सामान भी सड़ियल दिया। वो तो कहो जनता को मुफ्त में बांटा गया वर्ना तोड़-फोड़ होती। कोई फायदा नहीं इस घोषणा से। बल्कि लफड़ा है। बिजली फिर सबके लिए लोग मांगेंगे। फिर इस बार बिजली की घोषणा करें क्या? एक ने सुझाव दिया। अरे भैया बिजली होती तो फिर क्या था। बिजली बनायेगा कौन? जित्ती बनती है सब अपने चुनाव क्षेत्र में ही खप जाती है। बिजली का नाम मत लो, जनता दौड़ा लेगी। इनवर्टर कैसा रहेगा? अबे इनवर्टर क्या हवा में चार्ज होगा? उसके लिये भी तो बिजली चाहिये। बिजली से अलग कोई आइटम बताओ। क्या मोटरसाइकिल की घोषणा कर सकते हैं? दूसरे ने सुझाव दिया। करने को तो कर सकते हैं लेकिन लफड़ा ये है कि कोई गारंटी नहीं कि हम चुनाव में हार ही जाएं। अगर ये पक्का होता कि हम हार ही जाएंगे तो मोटर साइकिल क्या कार की घोषणा कर देते। लेकिन जनता का कोई भरोसा नहीं। अगर जिता दिया तो लिए कटोरा घूमते रहेंगे मोटरसाइकिल देने के लिए। साहब आप घोषणा कर दीजिये न। जीत गये तो किश्तों में दे देंगे। पहले साल पहिया देंगे, दूसरे साल इंजन , इसके बाद सीट और फिर चैन। पूरी मोटरसाइकिल योजना चार चुनाव में चलेगी। अगर जनता को मोटरसाइकिल चाहिए होगी तो झक मार के जिताएगी चार बार। युवा नेता मोटरसाइकिल पर अड़ा था। अरे वोटर इत्ता सबर नहीं करता भाई। चार चुनाव तक इंतजार नहीं करेगा। उसको भी हर बार वैरियेशन चाहिये। मोटर साइकिल का झुनझुना बजेगा नहीं। पेट्रोल भी मंहगा है। फिर मोटर साइकिल तो लड़कों के लिए हुई। लड़कियों के लिए स्कूटी चाहिए होगी। अलग-अलग आइटम हो जाएंगे। कोई जरूरी है कोई सामान मुफ्त में देना? जनता को मुफ्त का सामान देने की बजाय और कोई भलाई का काम करें। एक युवा नेता ने,जिसके चेहरे से क्रांति टपक रही थी ,सुझाया। देखने में तो समझदार लगते हो लेकिन जनता के बारे में समझ कमजोर है बरुखुरदार की। चुनाव लड़ना लड़की की शादी करने की तरह है। लड़के वाले कुछ नहीं चाहते फिर भी टीवी, फ्रिज, कार देना पड़ता है लड़की वाले को। दस्तूर है। जनता को भी मुफ्त का सामान देने का दस्तूर बन गया है तो निभाना पड़ेगा चाहे हंस के निभाएं या रो के। नेता के चेहरे पर बेटी के बाप का दर्द पोस्टर की तरह चिपका दिखा। आप लोग बताओ जनता की क्या पसंद है? किस चीज को सबसे ज्यादा जरूरत है उसे। आप लोग जनता के नुमाइंदे हो। उसकी पसंद अच्छे से जानते होंगे,नेता ने सवाल उछाला। तभी सारी बातें सुन रहा एक शख्स बोला, जनता सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान चाहती है। वो देने का वादा कर दो बस...।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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