Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
मुन्नी को भूल तो नहीं गए आप?
क्या कहा? उसे कैसे भूल सकते है भला... !! सो तो है. (लेखक आपके इस कथन से सहमत है कि मुन्नी को नहीं भूला जा सकता) तो जनाब मुन्नी जो है उसको जीतना और पीटना तो पसंद है ही.. बचपन में भी या तो वो किसी खेल को जीत लेती थी या हारने पर जीतने वाले को पीट देती थी.. लेन देन के मामले में बच्ची बचपन से ही बड़ी मुखर थी.. और वो लोग जो ये कहते फिरते है कि पूत के पांव पालने में ही नज़र आ जाते है.. उनको भी मुन्नी यदा कदा ढूंढती रहती.. कि यदि वो लोग मिल जाए तो उनके पालनो (आप समझ ही गए होंगे) पे दो लात जमा के बताये कि पूत ही नहीं पुत्रियों के पांव भी पालने में ही नज़र आते है..
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