Re: आक्षेप का पटाक्षेप
६. गोस्वामी तुलसीदास ने इन्द्र के बारे में लिखा है- 'काक सामान पाप रिपु रितिऔ। छली मलीन कतहूँ न प्रतितो।।' अर्थात्- ''इन्द्र का तौर तरीका काले कौए का सा है, वह छली है। उसका ह्रदय मलीन है तथा किसी पर वह विश्वास नहीं करता। वह अश्वमेघ के घोड़ों को चुराया करता था। इन्द्र ने गौतम की धर्म पत्नी अहिल्या का सतीत्व अपहरण किया था।'' सम्पूर्ण कथा इस प्रकार है- इन्द्र ने आश्रम से मुनि की अनुपस्थिति जानकर और मुनि का वेश धारण कर अहिल्या से कहा-||१७|| ‘हे अति सुंदरी! कामिजन भोग-विलास के लिए रीतिकाल की प्रतीक्षा नहीं करते, अर्थात इस बात का इंतजार नहीं करते की जब स्त्री मासिक धर्म से निवृत हो जाए तभी उनके सात समागम करना चाहिए। अत: हे सुन्दर कमर वाली! मैं तुम्हारे साथ प्रसंग करना चाहता हूँ।‘||१८|| विश्वामित्र कहते है कि ‘हे रामचन्द्र! वह (अहिल्या) मूर्ख मुनिवेशधारी इन्द्र को पहचान कर भी इस विचार से कि देखूं- देवराज के साथ रति करने से कैसा दिव्य आनंद प्राप्त होता है, इस पाप कर्म के करने में सहमत हो गई।‘||१९|| तदनन्तर वह कृतार्थ ह्रदय से देवताओं में श्रेष्ठ इन्द्र से बोली कि हे सुरोत्तम! मैं कृतार्थ ह्रदय अर्थात देवी-रति का आनंदोपभोग करने से मुझे अपनी तपस्या का फल मिल गया। अब, हे प्रेमी! आप यहाँ से शीघ्र चले जाइए।||२०|| हे देवराज, आप गौतम से अपनी और मेरी रक्षा सब प्रकार से करें। इन्द्र ने हंसकर अहिल्या से वाच कहा ||21|| हे सुन्दर नितम्बों वाली! मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ। अब जहाँ से आया हूँ, वहाँ चला जाऊँगा। इस प्रकार अहिल्या के साथ संगम कर वह कुटिया से निकल गया। ||२२||
क्या उपरोक्त अनुच्छेद इन्द्र की प्रसंशा में लिखा गया है?
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