30-04-2014, 11:23 PM
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#170
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"मुझे आरज़ू -ए -सहर राही,
यूँही रात भर बड़ी देर तक !
न बिखर सका न सिमट सका,
यूँही रात भर बड़ी देर तक !!
था बहोत अज़ब और अकेले हम,
शाब -ए -ग़म भी मेरी तवील तर !
राही ज़िन्दगी भी सराब और,
राही आँख तर बड़ी देर तक !!
यहाँ हर तरफ है अजब समा,
सभी खुद पसंद सभी खुद नुमा !
दिल -ए -बेकरार को न मिल सका,
कोई चारा गर बड़ी देर तक !!
मुझे ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर,
इसी वास्ते मेरे हमसफ़र,
मुझे क़तरा क़तरा पिला ज़हर,
जो करे असर बड़ी देर तक …..........!!!"
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!"
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