13-03-2015, 10:55 PM
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#20
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Re: कुछ ओर!
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Originally Posted by deep_
शाम
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जो धुप में थी दौडी,
वह बादलों की टोली,
ईस सांझ के किनारे,
सरेआम रुक गई है।
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वाह...वाह !! आपकी कविताओं को पढ़ कर यही कह सकते हैं कि 'एक से बढ़ कर एक'. सारी रचना अद्वितीय है, किंतु उपरोक्त पंक्तियाँ आपकी कल्पना की जैसे खूबसूरती बयान करती है. बहुत बहुत धन्यवाद, दीप जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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