06-04-2013, 08:03 PM
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#28
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Super Moderator
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Re: इधर-उधर से
गीतांजली से—
चित्त जेथा भयशून्य, उच्च जेथा शिर,
ज्ञान जेथा मुक्त, जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड क्षुद्रकरि
जेथा वाक्य हृदयेर उत समुख हते
उच्छवसिया उठे, तेता निर्वारित स्त्रोते
देशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय –
जेथा तुच्छ आचारेर मरुवालुराशि
विचारेर स्त्रोत पथ फेले नाई ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुम सर्व कर्म चिन्ता आनन्देर नेता—
निज हस्ते निर्दय आघात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित.
(नैवेद्य)
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