26-12-2014, 05:30 PM
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Re: लेखकों व कलाकारों की अजीबो-गरीब आदतें
पंजाबी के महान कथाकार नानक सिंह
(स. नानक सिंह के पौते कथाकार करमवीर सिंह सूरी के आलेख पर आधारित)
बाऊ जी (नानक सिंह जी) ने अपने बहुत से उपन्यास पहाड़ों पर जा कर लिखे थे. यह स्थान होते थे- धरमशाला, डलहौज़ी, मैकलोड गंज, कश्मीर आदि. वह वहां कैसे चले जाते थे, घर परिवार को छोड़ कर हालांकि घर की तंगी-तुर्शियाँ भी उनके सामने थीं. एक फ्रीलांस लेखक, जो बिना किसी नौकरी के हो, कैसे इतना महंगा शौक पाल सकता है? पहाड़ों पर मनो-विनोद कर सके. यह बड़ा महंगा शौक है. अकेला व्यक्ति वहां महीना-महीना कैसे ठहर सकता है? एक दिन मेरे पूछने पर मेरी दादी जी (स. नानक सिंह की पत्नी) ने बताया कि तेरे बाऊ जी पहाड़ों पर घूमने फिरने नहीं जाते थे. उपन्यास लिखने के लिए, काम करने के लिए जाते थे. उपन्यास लिखते ताकि घर का खर्चा चले.
उपन्यास लिखते समय वह स्वयं ही अंगीठी या स्टोव पर चाय बनाते, स्वयं रोटी पकाते, स्वयं कपडे और बरतन धोते थे और उसी रसोई-कम-स्टोर में सो जाया करते थे. यदि कभी रोटी न बनाने का मन किया, तो बाहर किसी ढाबे पर खाना खा लेते थे. चौबीस घंटे अकेले में गुजारना, उपन्यास की कहानी के बारे में ही सोचे जाना या लिख लिख कर कागज़ चारपाई के नीचे फेंकते जाना. यह साधना या तपस्या नहीं तो और क्या था, कहवा पी-पी कर लिखे जाना. यह भी बात उनके सामने होती होगी कि यदि नहीं लिखूंगा तो घर के खर्च कैसे पूरे होंगे? बच्चों की पढाई कैसे पूरी होगी? उनमे दृढ़ता, धीरज, सहिष्णुता, विनम्रता जैसे गुणों की कमी न थी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 27-12-2014 at 09:43 PM.
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