Re: इधर-उधर से
1990 से दिल्ली में प्रदूषण
इधर दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में वायु प्रदूषण एक खतरनाक शक्ल अख्तियार करता जा रहा है. प्रदूषण का असर इतना गहरा है कि सड़कों पर पचास मीटर दूर की चीज भी साफ़ नज़र नहीं आती. नॉएडा-आगरा एक्सप्रेसवे पर कल बहुत सी गाड़ियों के एक्सीडेंट हो गए. बच्चों के स्कूल में कुछ दिनों की छुट्टी कर दी गयी है. लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. अस्पतालों में श्वांस संबंधी बीमारियों के मरीज पहले के मुकाबले अधिक संख्या में भारती हो रहे हैं. अखबारों के अलावा टीवी के न्यूज़ चैनल पर भी प्रदूषण का विषय ही प्रमुखता से छाया रहा. डिबेट में भी इसी विषय पर मुख्य रूप से चर्चा हुयी.
इसी पृष्ठ भूमि में मुझे अपनी डायरी में आज से 27 वर्ष पूर्व के यानी सन 1990 की सर्दियों में दर्ज एक आलेख के अंश दिखाई दे गए. उन दिनों मैं इंडियन एक्सप्रेस अखबार पढ़ा करता था (जिसके एडीटर अरुण शौरी थे). इस अंश को पढ़ कर पता चलता है कि उस समय भी सर्दी के दिनों में दिल्ली गंभीर प्रदूषण की गिरफ्त में थी. सम्पादकीय के अंश इस प्रकार हैं:-
“Every winter a natural phenomenon called the atmospheric inversion traps cold air over Delhi and along with it a deadly cocktail of gaseous pollutants.
What is worrisome is that with 650 tonnes of noxious fumes spewed out by vehicles daily, the capital effectively turns into a giant gas chamber between November and January. “
हाँ, उस समय वाहनों में C N G का उपयोग नहीं होता था और डीज़ल वाले वाहनों पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं थी. लेकिन तब के मुकाबले वाहनों की संख्या सैंकड़ों गुना बढ़ गई है. साथ ही पंजाब, हरियाणा तथा यूपी में खेतों में धान की फसल कटने के बाद किसानों द्वारा पराली जलाने बुरी प्रथा के चलते इस सारे इलाके में धुआं फ़ैल जाता है जो नमीं के कारण धरती के निकट ही तैरता रहता है. राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस पर भारी जुर्माना तय कर रखा है लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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