Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
उसके बाल बर्फ की तरह सफेद थे। उसके सर, दाढ़ी, मूँछों और भौंहों के बाल इतने बढ़ गए थे कि उसका सारा शरीर बालों से ढक गया था। उसके हाथों और पैरों के नाखून बहुत बढ़ गए थे और कीलों की तरह मालूम होते थे और उसके सिर पर एक लंबी टोपी रखी हुई थी। उसने अपना शरीर एक चटाई से ढक रखा था। जिसके ऊपर उनके बाल पड़े हुए थे। बहमन उसे देख कर समझ गया कि वह कोई तपस्वी सिद्ध है जो ऐसे दुर्गम और निर्जन स्थान में अकेला बगैर खाए-पिए तपस्यारत रहता है।
बहमन को तो तलाश थी ही कि कोई आदमी मिले क्योंकि पहला मिलनेवाला ही उसे गंतव्य स्थान का पता दे सकता था। वह यह भी समझ गया कि पहला और आखिरी आदमी यहाँ यह ही मिल सकता है और यह भी स्वाभाविक ही है कि ऐसी अलभ्य वस्तुओं का पता किसी सिद्ध तपस्वी से लगे। बहमन घोड़े से उतरा और उसने वृद्ध तपस्वी के पास जा कर प्रणाम किया। बहमन को उस जगह से जहाँ वृद्ध का मुख हो सकता था कोई ध्वनि तो सुनाई दी किंतु उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।
कुछ देर बाद बहमन ने समझ लिया कि मूँछों और दाढ़ी के घने बालों ने बूढ़े सिद्ध का मुख इस रह बंद कर रखा है कि इसकी आवाज घुट कर रह जाती है। उसने अपना घोड़ा एक पेड़ से बाँधा और तपस्वी के पास आ कर अपनी जेब से एक छोटी-सी कैंची निकाली। फिर वह बोला, हे तपस्वी पिता, तुम्हारी बात मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आई। अगर अनुमति दो तो मैं तुम्हारी भौंहें और मूँछें छाट दूँ। इनके कारण तुम्हारी सूरत आदमी के बजाय रीछ जैसी मालूम होती है। तपस्वी ने इशारे से उसे अनुमति दे दी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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