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दिल्ली में केजरीवाल दौड़ाएंगे 10 हजार प्राइवेट बसें!
केजरीवाल जब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज नहीं हुए थे, तब तक सरकार नाम की संस्था सबसे ऊपर थी और निजी कंपनियां लुटेरी। अब जब अरविंद केजरीवाल खुद सरकार बन गए हैं तो निजीकरण की ताल पर ता था थैया करने में गुरेज़ नहीं। डीटीसी के बेड़े में हज़ार बसें जोड़ने का सवाल खड़ा हुआ तो आइडिया का बल्ब चमक उठा और रोशनी निजीकरण की निकली। केजरीवाल ने कहा था कि सरकार का काम नियम बनाना है, हमारा काम बसें चलाना नहीं होना चाहिए।
बयान उद्योगपतियों के बीच बैठकर दिया गया, सो उसके सियासी और आर्थिक मायने समझने में कोई पेच नहीं है। सब सीधा सपाट है। यानी निजीकरण अब केजरीवाल के लिए वो गली नहीं रही जिसमें दाख़िल होना मना हो। मुख्यमंत्री यहीं नहीं रुके, उन्होंने साफ किया कि इस बारे में मुख्य सचिव को प्रस्ताव तैयार करने की ताकीद दे दी गई है। केजरीवाल ने कहा कि चीफ सेक्रेटरी प्रस्ताव बना रहे हैं। एक साथ 10 हजार बसें आ सकती है।
अब निजीकरण होगा तो किरायों पर कैसे लगाम लगेगी, बसें कमाऊ रूट पर ही चलेंगी या फिर पूरी दिल्ली का ख्याल रखा जाएगा, ऐसे सवालों पर सिर्फ चुप्पी ही है। यानी, कल तक जो सरकार हर मसले पर आम आदमी की रायशुमारी की बात करती थी, उसने बसों में सफर करने वाली आधी दिल्ली को ही नजरअंदाज कर दिया। इस मसले पर कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक केजरीवाल को छोड़ने के मूड में नहीं।
एक तरफ निजीकरण की आहट है तो दूसरी तरफ है अपने वोटबैंक को मजबूत करके बाकी दिल्लीवासियों की अनदेखी की कवायद। सरकार के नए नियमों के मुताबिक अब दिल्ली पुलिस यातायात नियमों के कुछ उल्लंघन होने पर भी ऑटो का चालान नहीं कर पाएगी। सरकार ने पुलिस से ये अधिकार छीन लिया है। यातायात पुलिस को नियमों के मामूली उल्लंघन पर अब ऑटो जब्त करने का अधिकार सरकार ने छीन लिया है। ये एक तीर से दो निशाने की कोशिश है। वोटबैंक की मजबूती और केंद्र सरकार से कानून के मुद्दे पर टकराव। इस मुद्दे पर भी सियासी बयानबाजी तेज़ होने लगी है।
केंद्र से टकराव का एक और रास्ता सरकार ने खोज निकाला है। सरकार ने पुलिस कमिश्नर को चिट्ठी लिखकर कई मुद्दे उठाए हैं। इसमें पुलिस से संबंधित कई मामलों की जानकारी मांगी गई है। महिलाओं के लिहाज से असुरक्षित जगह कौन सी हैं, उन जगहों पर लगाए जाएंगे सीसीटीवी कैमरे, सभी थानों में लगाए जाएं सीसीटीवी, सीसीटीवी पुलिस लगाए, खर्चा सरकार देगी, सभी बीट कॉन्सटेबल की जानकारी वेबसाइट पर डालें।
ये बिना शक पुलिस और कानून व्यवस्था को कुछ हद तक दिल्ली के दायरे में लाने की कोशिश है। लेकिन उससे भी अहम बात ये कि सीधे केन्द्र से टकराने की कोशिश भी है। क्योंकि पुलिस को लेकर केन्द्र और दिल्ली पहले भी आमने सामने आ चुके हैं। ज़ाहिर है मुख्यमंत्री केजरीवाल धीरे-धीरे तमाम मुद्दों पर सरकार का रुख़ साफ कर रहे हैं।
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