Re: डायरी के पन्ने
डायरी के पन्ने (5)
अब मैं कौनसी दिशा पकडूँ? पूरब या पश्चिम? चलो, पूरब का अन्तिम पड़ाव। उस पर संक्षिप्त सा दृष्टिपात। हैदराबाद के ‘दीपक’, कानुपर के ‘हरिशंकर विद्यार्थी’ के बाद एक नाम और जोड़ा जाए। वे हैं ‘हरिवंश राय बच्चन’। वे युनिवर्सिटी के एक होनहार और प्रतिभाशाली छात्र माने जाते थे। जब मैं बी.ए. फर्स्ट ईयर में थी, वह एम.ए. अंग्रेज़ी के फाइनल ईयर में पढ़ रहे थे। किसी छोटे कस्बे के मध्यवर्गीय परिवार के पुत्र थे। उनकी पत्नी का देहान्त टी.बी. से उन दिनों हुआ ही होगा। हमारे पुद्दे मामा उनसे अति प्रभावित थे। उनके विधुर होने की सूचना मामा को मिली। उन्होंने पहले जीजा से इस सम्बन्ध में बात की क्योंकि मामा की दृष्टि में बच्चनजी जैसा वर मित्थल के लिए ढूँढे न मिलेगा। जीजाजी की उदासीनता देख मामा ने दादा को लिखा, दादा ने मामा को उत्तर दिया कि मित्थल की राय ले लो। वह अगर सहमत है तो दादा को आपत्ति नहीं। एक विधुर पति की पत्नी होना कैसा होगा, मुझे बड़ा अटपटा सा लगा। अतः बात यों ही आई-गई हो कर रह गई। दूसरे वर्ष बच्चनजी का विवाह तेजी से हो गया। इसके बाद पुद्दे मामा बच्चनजी से मिलने उनके घर गए। उस समय मामा ने उस घर का जो हर्षोल्लास देखा, उस वातावरण की मधुरिमा देखी, उनको कुछ झटका सा लगा। सीधे हमारे यहां आए और बच्चनजी को जिस रूप में देखा उसका वर्णन कर डाला। बच्चन जी उस समय अपने घर के बरामदे में सपत्नीक बैठे थे। सामने टी-टेबल पर चाय की ट्रे लगी थी। बच्चनजी मस्ती में अपने गीत गाते झूम रहे थे आदि…..। दीदी से ही मामा ने कहा- ‘‘हमने एक स्वर्णिम अवसर खो दिया।” संयोग इसे कहते हैं।
Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 10:28 AM.
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