Re: डायरी के पन्ने
जिस दिन उन्होंने मुझे अपनी कक्षाएं सौंपी उनके चेहरे पर किसी प्रकार का क्षेभ नहीं – न कोई मलाल, न कोई वैमनस्य। बड़े स्नेह और उत्साह से उन्होंने अपनी शिष्याओं से मेरा परिचय कराया था। मेरे प्रति उनका व्यवहार सदैव मातृतुल्य रहा था। मेरे विवाह पर उन्होंने कटक का फिलिग्री काम का चाँदी का ब्रेसलेट और एक लकड़ी का इत्रदान भेंट किया था। वह ब्रेसलेट मेरी कलाई के लिए बहुत बड़ा था, अतः किसी अवसर पर मैंने उसे मुन्नी को दे दिया। इत्रदान अभी है, जिसे देख कर उनकी याद ताज़ा हो जाती है। अब छात्राओं से पूर्व अपनी सहकर्मियों का परिचय दे दूँ। मिस नैन्सी मार्टिन, हमारी प्रधानाध्यापिका थीं। मिसेज राव गणित की अध्यापिका, मिस रूबेन्स चित्रकला की, सुश्री अनुसूया करकरे इतिहास की, मिसेज़ पॉल आठवीं तक अंग्रेज़ी पढ़ाने की, श्रीमती बादामी बहिन जी सिलाई की, मिस सिंह शायद भूगोल की अध्यापिका थीं। एक मिसेज़ माथुर थीं जो छोटी कक्षाओं को पढ़ातीं तथा पुस्तकालय भी चलाती थीं। वह डॉक्टर प्रेमप्यारी माथुर की भावज थीं। हाँ, शिशु कक्षा की इन्जार्च थीं मिस लीला हैनरी। उन्होंने बिर्जन के साथ ही अड्यार में मॉन्टेसरी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। मेरी पहली मित्र बनीं मिस रूबेन्स, वह बम्बई निवासिनी यहूदी महिला थीं। ड्रॉइंग की वह कुशल अध्यापिका थीं। ड्रॉइंग वैकल्पिक विषय हुआ करता था। कक्षा में वह कुछ कड़ा रूख रखती थीं फिर भी छात्राएँ उनसे प्रसन्न रहती थीं। वह कलात्मक तरीके से सजी-सँवरी आती थीं। वह इकलौती अध्यापिका थीं, जिन्होंने दोस्ती का हाथ बढ़ा कर मुझे अपना बना लिया था। मिस मार्टिन को वह फूटी आँखों न सुहाती थीं। कारण दो थे। पहला और मुख्य कारण था, उनका यहूदी होना। दूसरा यह कि वह अपनी शिष्याओं के बीच काफी लोकप्रिय थीं। शनैः-शनैः उनके साथ मेरी घनिष्टता बढ़ती देख मिस मार्टिन मुझसे भी बिदक गईं। कोई न कोई निमित्त ढूंढ लड़कियों के सामने मुझे टोकते रहना उनका स्वभाव बन गया।
Last edited by rajnish manga; 31-08-2013 at 10:32 AM.
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