Re: मुहावरों की कहानी
"और देख, इसको पानी भी पिलाना; परन्तु थोड़ा गर्म करके देना।"
"आपकी इन छोटी-छोटी बातों के समझाने से मुझे शर्म आती है।"
"जौ में जरा-सी घास भी मिला देना।"
"आप धीरज से बैठे रहिए। सबकुछ हो जायेगा।"
"उस जगह का कूड़ा-करकट साफ कर देना और अगर वहां सील हो तो सूखी घास बिछा देना।"
"ऐ बुजुर्गवार! एक योग्य सेवक से ऐसी बातें करने से क्या लाभ?"
"मियां, जरा खुरेरा भी फिर देना, और ठंड का मौसम है खच्चर की पीठ पर झूल भी डाल देना।"
"हजरत, आप चिन्ता न कीजिए। मेरा काम दूध की तरह स्वच्छ और बेलग होता है। मैं आपने काम में आपसे ज्यादा होशियार हो गया हूं। भले-बुरे मेहमानों से वास्ता पड़ा है। जिसे जैसा देखता हूं, वैसी ही उसकी सेवा करता हूं।"
नौकर ने इतना कहकर कम कसी और चला गया। खच्चर का इन्तजाम तो उसे क्या करना था। अपने गुट के मित्रों में बैठकर सूफ़ी की हंसी उड़ाने लगा। सूफी रास्ते का हारा-थका ही, लेट गया और अर्द्धनिद्रा की अवस्था में सपना देखने लगा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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