Re: मुहावरों की कहानी
इतना सब होते हुए भी 'विभीषण' केवल व्यक्तिवाचक संज्ञा नहीं रह गया बल्कि व्यक्तिगत हित के लिए परिवार या समाज को धोखा देकर विरोधी का साथ देने वाले व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला विशेषण बन गया। कभी भूलवश भी विभीषण शब्द का प्रयोग किसी अच्छे संदर्भ में नहीं किया जाता है। इसी तरह विभीषण नाम का कोई व्यक्ति आपको न नागर समाज, न ग्राम्य समाज और न जनजातीय समाज में मिलेगा, जबकि रामायण और महाभारत के अन्य कुछ खलनायकों जैसे-दुर्योधन, कौरव, मेघनाथ आदि नाम के प्रयोग में किए गए मिलते हैं। इसका एक अर्थ यह है कि पौराणिक साहित्य का विभीषण नाम परवर्ती साहित्य और समाज में सर्वथा वर्जित हो गया है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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