Re: शायरी में मुहावरे
'असद' ख़ुशी से मिरे हाथ पाँव फूल गए
कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे
मिर्ज़ा ग़ालिब
सर उड़ाने के जो वादे को मुकर्रर चाहा
हँस के बोले कि तिरे सर की क़सम है हम को
मिर्ज़ा ग़ालिब
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छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें
मिट्टी मिरी ख़राब अबस दर-ब-दर हुई
भारतेंदु हरिश्चंद्र
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आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
मिर्ज़ा ग़ालिब
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इतना समझ चुकी थी मैं उसके मिज़ाज को
वो जा रहा था और मैं हैरान भी न थी
Parveen Shakir
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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