Re: कुतुबनुमा
पाक-चीन रिश्तों पर नजर रखनी होगी
पाकिस्तान ने जिस तरह से औपचारिक रूप से अपने निर्माणाधीन ग्वादार पोर्ट का जिम्मा चीन को सौंप देने का फैसला किया है उससे भारत की चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है। पिछले कुछ अर्से से हिंद महासागर में चीन का दखल निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा में पहले ही अपनी पैठ बना ली है और पिछले कई दिनो से वह मालदीव को भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा बांग्लादेश के चटगांव में भी चीन एक पोर्ट बना रहा है। ऐसे में बंगाल की खाड़ी,हिन्द महासाहर और अरब सागर में चीन की मौजूदगी भारत के लिए चिंता का सबब बन सकती है। पहले ग्वादर पोर्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी सिंगापुर की कम्पनी के पास थी हालांकि पोर्ट का शुरूआती निर्माण चीन ने ही किया था। बाद में सिंगापुर की कम्पनी पीएसए इंटरनेशनल से पोर्ट के विकास के लिए पाकिस्तान का कांट्रेक्ट हुआ। यह कम्पनी जिस धीमी गति से काम कर रही थी उससे पाकिस्तान संतुष्ट नहीं था। जमीन हस्तान्तरण,बुनियादी ढांचे की कमी और सुरक्षा कारणों से कम्पनी और पाकिस्तान की नौ सेना के बीच मनमुटाव हो गया तो कम्पनी ने कांट्रेक्ट से हाथ खींच लिया। अब पाकिस्तान ने पोर्ट के आपरेशन का जिम्मा चीन की ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग को सौंप दिया है। पाकिस्तान चाहता है कि चीन जल्द से जल्द इस पोर्ट का काम पूरा कर दे। पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि अगर चीन पोर्ट पर अपना नेवल बेस बनान चाहे तो बना सकता है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने दो वर्ष पहले भी यह घोषणा की थी कि अगर चीन चाहे तो पाकिस्तान इस पोर्ट का मालिकाना हक चीन की कंपनी को ट्रांसफर कर सकता है अर्थात कहीं ना कहीं इस पोर्ट की आड़ में चीन और पाकिस्तान अंदरूनी तौर पर कोई गुल भी खिला सकते हैं और इसी वजह से भारत ग्वादार पोर्ट का जिम्मा चीन को सौपे जाने से चिंतित है। दो चरणों मे पूरा होने वाला यह पोर्ट करांची से करीब 460 किलोमीटर दूर बन रहा है। भारत को इस पर नजर रखनी होगी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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