Re: कुतुबनुमा
संसद में बहस की गंभीरता जरूरी
संसद में पिछले कुछ समय से विपक्ष द्वारा संसद की कार्यवाही को बार-बार स्थगित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने जो चिंता जताई है वह काफी संजीदा है और विपक्षी दलों को इस चिंता पर विचार करना चाहिए। राष्ट्रपति बनने से पहले लोकसभा के नेता रहे मुखर्जी सरकार की तरफ से ऐसे गतिरोध को दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं और हाल ही में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एनकेपी साल्वे स्मारक व्याख्यान में उन्होने अपने इसी अनुभवों को बांटा भी। संसद एवं राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही में बार-बार बाधाएं डाले जाने की प्रवृत्ति इन दिनो काफी बढ़ गई है । दरअसल ये व्यवधान ऐेसे मामूली मुद्दों को लेकर होता है जिनका समाधान किया जा सकता है लेकिन सदस्य, खासकर विपक्षी सदस्य जो हंगामा करते हैं वह उचित नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रपति ने भी माना कि अधिकतर समय विवाद इस बात पर होता है कि किसी मुद्दे पर संसद के किस नियम के तहत चर्चा हो। उन्होंने कहा कि अधिकतर अवसरों पर संसद के किसी भी सदन में विपक्ष के नेता इस आधार पर आपत्ति करते हैं कि किस नियम के तहत चर्चा हो। संविधान निर्माताओं ने भी यह नहीं सोचा था कि संसद में इस तरह की बाधा आने वाले समय में ‘प्रचलन’ बन जाएंगी। सभी को मिलकर इस पर विचार करना चाहिए और इन विकृतियों को दूर किया जाना चाहिए। इन बाधाओं के कारण वित्तीय मामलों पर सदन में चर्चा करने की शक्ति का भी पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। राष्ट्रपति ने भी माना कि पहले संसद में पंचवर्षीय योजना पर विस्तार से चर्चा होती थी लेकिन मुझे याद नहीं है कि आठवीं, नौवीं और दसवीं योजनाओं पर सदन में चर्चा हुई। यह वास्तव में एक विचारणीय प्रश्न है कि अगर विपक्ष गंभीर विषयों पर भी सदन में चर्चा के लिए गंभीरता नहीं दिखाएगा तो सदन के मायने ही क्या रह जाएंगे। सभी दलों को राष्ट्रपति की चिंता को समझ कर इस समस्या के समाधान में ठोस पहल करनी चाहिए।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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