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Old 09-12-2010, 07:54 PM   #18
Hamsafar+
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Default Re: तेनाली राम की कहानियॉ

तेनालीराम ने कहा-‘कभी मैं भी तुम्हारी तरह कुबड़ा था, पूरे दस साल मैं इस कष्ट से दुखी रहा। जो देखता वही मुझ पर हँसता। यहाँ तक कि मेरी पत्नी भी। आखिर एक दिन अचानक मुझे एक महात्मा मिल गए। वह मुझसे बोले, ‘इस पवित्र स्थान पर पूरा एक दिन आँख बंद किए और बिना एक शब्द भी बोले गरदन तक खड़े रहोगे तो तुम्हारा कष्ट दूर हो जाएगा। मिट्टी खोदकर मुझे बाहर निकालकर तो जरा देखो कि मेरा कूबड़ दूर हो गया है कि नहीं?’

धोबी ने उसके चारों ओर की मिट्टी खोदी। जब तेनालीराम बाहर निकला तो धोबी बहुत हैरान हुआ। सचमुच कूबड़ का कहीं नाम निशान तक नहीं था।

वह तेनालीराम से बोला, ‘सालों हो गए इस कूबड़ के बोझ को पीठ पर लादे हुए। मैं क्या जानता था कि इसका इलाज इतना आसान है। मुझ पर इतनी कृपा करो, मुझे यहीं गाड़ दो। मेरे ये कपड़े धोबी मुहल्ले में जाकर मेरी पत्नी को दे देना और उससे कहना कि वह सवेरे मेरा नाश्ता ले आए। मैं तुम्हारा यह अहसान जीवन-भर नहीं भूलूँगा. और, हाँ मेरी पत्नी को यह मत बताना कि कल तक मेरा कूबड़ ठीक हो जाएगा। मैं कल उसे हैरान करना चाहता हूँ।’

‘बहुत अच्छा।’ तेनालीराम ने धोबी से कहा और उसे गरदन तक गाड़ दिया। फिर उसके कपड़े बगल में दबाकर बोला,‘अच्छा, तो मैं चलता हूँ। अपनी आँखें बंद रखना और मुँह भी, चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, नहीं तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और यह कूबड़ बढ़कर दो गुना हो जाएगा।’

‘चिंता मत करो, मैंने कूबड़ के कारण बड़े दुख उठाए हैं। इसे दूर करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।’ धोबी ने कहा। तेनालीराम वहाँ से चलता बना।

कुछ देर बाद राजा के सिपाही एक हाथी लेकर पहुँचे और धोबी का सिर उसके पाँवों तले कुचलवा दिया। सिपाहियों को पता नहीं चला कि यह कोई और व्यक्ति है। सिपाही तेनालीराम की मृत्यु का समाचार लेकर राजा के पास पहुँचे। तब तक उनका क्रोध शांत हो गया था और वे दुखी थे, क्योंकि उन्होंने तेनालीराम को मृत्युदंड दिया. तब तक उस पाखंडी साधु के बारे में भी उन्हें काफी कुछ पता चल चुका था।

वह सोच रहे थे, ‘बेचारे तेनालीराम को बेकार ही अपनी जान गँवानी पड़ी। उसने तो एक ऐसे अपराधी को दंड दिया था, जिसे मेरे पुलिस अफसर भी नहीं पकड़ सके थे।’ अभी राजा सोच में ही डूबे थे कि तेनालीराम दरबार में आ पहुँचा और बोला,‘महाराज की जय हो!’ राजा सहित सभी आश्चर्य से उसके चेहरे की ओर देख रहे थे। तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय को सारी कहानी कह सुनाई। राजा ने उसे क्षमा कर दिया।

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