ऑडिशन देने में बीत जाती है जिंदगी
माया नगरी मुंबई में किस्*मत आजमाने के लिए हर रोज सैकड़ों युवा आते हैं। कुछ टीवी के ग्*लैमर से प्रभावित होकर तो कुछ अपनी कला को दिखाने के लिए यहां आते हैं। कुछ इसे पैसा कमाने का अड्डा मानते हैं और घर-परिवार छोड़कर माया नगरी आ जाते हैं। लेकिन, वर्षों तक ऑडिशन देते रहने और काम की तलाश करने के बाद अधिकतर लौट जाते हैं। कुछ गुमनाम जिंदगी जीने लगते हैं। विरले परदे पर दिख पाते हैं। यही है माया नगरी की पूरी जिंदगी। यह कहना है राष्*ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्*ली से डिप्*लोमा करने के बाद किस्*मत आजमाने मुंबई गईं एक कलाकार सरवानी (बदला हुआ नाम) का। उनका कहना है कि इस इंडस्*ट्री में अगर कोई अपना नहीं है तो आपकी पूरी जिंदगी ऑडिशन देने में बीत जाएगी। इस रंगीन दुनिया के पीछे एक नरक है, जहां इंसान को इंसान नहीं समझा जाता। पूरी इंडस्*ट्री यूनियन और गुटों में बंटी हुई है, लेकिन कलाकारों के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। केवल आर्ट डिपार्टमेंट में तीन से चार यूनियन हैं, जो सदस्*यता के नाम पर मोटी रकम की वसूल करते हैं। उन्*होंने बताया कि एक यूनियन सिने और टेलीविजन आर्ट साल 2010 में सदस्*यता के लिए डोनेशन के नाम पर 51 हजार रुपये लेती थी। इसी तरह मनसे नामक यूनियन में सदस्*यता के लिए 10 हजार रुपये तक देने होते हैं। उनका कहना है कि ये सारी यूनियन्स नए कलाकारों से पैसा तो लेती हैं, लेकिन उनके कल्*याण के लिए कुछ नहीं करतीं।