उपरोक्त चित्र उस बैलगाडी का है जिसे रमेश और सुरेश नाम के दो बैल चलाते थे।
मालिक महेश बडा क्रूर था, गाडी में खुब सामान ढोता था। रमेश थोडा कमजोर था और पुराना था, जब की सुरेश नया और तगड़ा था।
महेश जब सामान भर कर गाडी हांकता तो रमेश हंमेशा सुरेश को जरा धीमे चलने को कहेता था। ताकी वह भी ठीक से चल सके। लेकिन सुरेश बुद्धि से भी पहेलवान ही था। वह तो गर्व से ओर जोर से चलने लगा।
महेश ने ईस पर सुरेश की खुब प्रसंशा की और रमेश को खुब डंडे मारे!
रमेश कई दिनो तक सुरेश को धीमे चलने कि विनती करता रहा लेकिन सुरेश...महेश द्वारा अप्लाई किए गए 'रूल नं ५ - डिवाईड एन्ड रुल' के चंगुल मे बुरी तरफ फंस चुका था।
एक दिन अत्याचार के मारे रमेश चलते चलते मर गया।
अब...मालिक महेशने कहा बेटा सुरेश....अब तो यह सामान तुझे अकेले ही खींचना पडेगा!
ईस प्रकार यह कथा यहां समाप्त होती है। मै तो प्रार्थना करता हूं की सुरेश को भी उससे अधिक बलशाली दिनेश जैसा बैल मिलना ही चाहीए!