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Old 12-03-2015, 05:10 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: ज़ोरॉस्ट्रा या ज़रथुस्त्र

ज़रथुस्त्र राजा की और देखकर मुस्कुराया और जमीन से गेहूँ का एक दाना उठा कर राजा को दे दिया और उस गेहूँ के दाने के माध्यम से यह बताया कि ‘’गेहूँ के इस छोटे से दाने से, सृष्टि के सारे नियम और प्रकृति की सारी शक्तियां समाई हुई है।

राजा तो ज़रथुष्ट्र के इस उत्तर को समझ ही न सका, और जब उसने अपने आसपास खड़े लोगों के चेहरे पर मुस्कान देखी तो वह गुस्से के मारे आग-बबूला हो गया। और उसे लगा कि उसका उपहास किया गया है, उसने गेहूँ के उस दाने को उठाकर जमीन पर पटक दिया। और ज़रथुस्त्र से उसने कहा, "मैं मूर्ख था जो मैंने अपना समय खराब किया, और आप से पर मिलने चला आया।"

वर्ष आए और गए। वह राजा एक अच्छे प्रशासऔर योद्धा के रूप में खूब सफल रहा। और खूब ही ठाठ-बाट और ऐश्वर्य का जीवन जी रहा था। लेकिन रात को यह सोने के लिए अपने बिस्तर पर जाता तो उसके मन में बड़े ही अजीब-अजीब से विचार से विचार उठने लगते और उसे परेशान करते; मैं इस आलीशान महल में खूब ठाठ बाट और ऐश्वर्य से जीवन जी रहा हूं, लेकिन आखिरकार मैं कब तक इस समृद्धि, राज्य, धन-दौलत से आनंदित होता रहूंगा। और जब मैं मर जाऊँगा तो फिर क्या होगा। क्या मेरे राज्य की शक्ति, मेरा घन-दौलत, संपति मुझे बीमारी से और मृत्यु से बचा सकेंगी। क्या मृत्यु के साथ ही सब कुछ समाप्त हो जाता है?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)

Last edited by rajnish manga; 12-03-2015 at 05:14 PM.
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