Re: ज़ोरॉस्ट्रा या ज़रथुस्त्र
थोड़े दिनों के बाद वह काफिला और संदेशवाहक वापस लौट आये। उन्होंने राजा को बताया कि वे ज़रथुस्त्र से मिले। ज़रथुस्त्र ने अपने आशीष भेजे है। लेकिन आपने उनको जो खजाना भेजा था, वह उन्होंने वापस लोटा दिया है। ज़रथुस्त्र ने उस खजानें को यह कहकर वापस कर दिया है कि उसे तो खजानों का खजाना मिल चुका है। और साथ ही ज़रथुस्त्र ने एक पत्ते में लपेट कर एक छोटा सा उपहार राजा के लिए भेजा है। और संदेशवाहक ने कहा कि वे राजा से जाकर कह दें कि इसमे ही वह शिक्षक है जो कि उसे सब कुछ समझा सकता है।
राजा ने ज़रथुस्त्र के भेजे हुए उपहार को खोला और फिर उसमें से उसी गेहूँ के दाने को पाया—गेहूँ का वही दाना जिसे ज़रथुस्त्र ने पहले भी फेंक दिया था। राजा ने सोचा कि जरूर इस दाने में कोई रहस्य या चमत्कार, इसलिए राजा ने एक सोने के डिब्बे में उस दाने को रखकर अपने खजाने में रख दिया। हर रोज वह उस गेहूँ के दाने को इस आशा के साथ देखता कि एक दिन जरूर कुछ चमत्कार घटित होगा, और गेहूँ का दाना किसी ऐसी चीज में या किसी ऐसे व्यक्ति में परिवर्तित हो जाएगा जिससे कि वह सब कुछ सीख जाएगा जो कुछ भी वह जानना चाहता है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 12-03-2015 at 05:34 PM.
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