Re: कथा-लघुकथा
ठाकुर-हंसुआ-भात
(कथाकार: चाँद मुंगेरी)
-अम्मा !भूख लगी है हमका भात देय दो अम्मा.
-थोडा वखत और रुक बबुआ.बाप गेल हौs माडुआ पिसाबे खातिर मिल...हूनका औवते ही तोहका रोटी बना दे वौs
माँ के आश्वासन भरे शब्द भी बबुआ को आश्वस्त न कर सके...वह तुनक कर बोला-रोटी!मडुआ की ? अम्मा आज दू दिन के बाद तू हमका खिलेयवेड़ भी तो रोटी-यू भी मडुआ की ?
-तब तोहका औरका चाहीं खीरे पुडी ?
माँ खीज कर बोली . माँ के क्रोध को पचाकर बबुआ ने खुशामदी स्वर में कहा-अम्माहमको भात दे दो अम्मा.बहुत जी चाहे भात खावेs ला .
-अरे करमजला अब ही साल भर पहले जब बड़का ठाकुर मारा रहा तो तू हुनका मरण-भोज में भात खाया fक नहीं ....बोल ?
-हाँ! खाया रहा.!. लेकिन अम्मा का ई दूसरा ठाकुर नहीं मरेगा ?
-मरेगा कैसे? बड़का को चोर मारा रहा...हिनका कौन..मारेगा ?
माँ के प्रश्न को सुन बबुआ की पकड़ हंसुआ पर सख्त हो गई...अब उसके समक्ष था सिर्फ-
ठाकुर ...हंसुआ....भात.
ठाकुर ...हंसुआ....भात.
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