सधन्यवाद वापिस
(लेखक: बलबीर त्यागी)
इस बार भी “सधन्यवाद वापिस” की स्लिप के साथ रचना लौट आने पर एक उभरते लेखक बन्धु बौखलाये हुये संपादक के कार्यालय में पहुंचे और अपनी रचनाओं के साथ लगाई गई सभी स्लिपों को सम्पादक जी के सामने मेज पर पटकते हुये झुंझलाहट भरे स्वर में बोले, “क्या मज़ाक है श्रीमान? आपने पहली रचना लौटाते हुये किसी स्तरीय रचना का आग्रह किया था. और अब स्तरीय रचना भेजी तो यह स्लिप !”
सम्पादक जी आँखों से जरा चश्मा खिसका कर मुस्कुराये और बोले, “तब आपकी रचना हमारी पत्रिका के स्तर की नहीं थी और अब हमारी पत्रिका आपकी रचना के स्तर की नहीं. यदि कहीं गुस्ताख़ी हुई है तो क्षमा चाहूंगा.”
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