Re: कथा-लघुकथा
लोकतंत्र
लेखक: अमर गंभीर
गाड़ी तेज रफ्तार से मंजिल की ओर बढ़ रही थी। डिब्बे में बैठी सवारियां अपनी बातों में मस्त थीं।
“मेरा दिल करता है, जंजीर खींचूं।” एक यात्री बोला।
“क्यों?”
“बस मन करता है।” उसने अपनी इच्छा प्रकट की।
और फिर सबने मिल कर फैसला किया,“इसे जंजीर खींच लेने दो। सभी मिलकर जुर्माने की रकम अदा कर देंगे।”
सभी सहमत थे, पर एक असहमत था।
“मैं क्यों दूँ पैसे! यह क्यों खींचे जंजीर…करे कोई, भरे कोई, यह कहाँ का नियम है?”
पर तब तक यात्री जंजीर खींच चुका था। जंजीर खींचते ही गाड़ी रुक गई। गार्ड उस डिब्बे में दाखिल हुआ। सभी ने मिल कर उस व्यक्ति पर दोष लगा दिया, जिसने उनकी हाँ में हाँ नहीं मिलाई थी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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