Re: मोटापा पर विशेष
अब आप आसानी से यह समझ सकते हैं कि टौब्स ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है और उनके अपने तर्क हैं। उन्हें एक जबर्दस्त पत्रकार के रूप में जाना जाता है, साथ हीं एक विज्ञान-प्रेमी के रूप में भी (उन्होंने हार्वर्ड में भौतिकी का अध्ययन किया है और फ़िर बाद में स्टैन्फ़ोर्ड से वैमानिकी की डिग्री ली है, साथ हीं उन्हें अपने विज्ञान लेखन के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं)। साथ हीं कुछ लोग उन्हें डेटा से खेलने वाला एक बेहतरीन जादूगर भी मानते हैं, जो दशकों के अध्य्यन से प्राप्त डेटा को कुछ ऐसा बुनते हैं कि वो निष्कर्ष निकल जाता हैं जो वो दुनिया को बताना/दिखाना चाहते हैं। फ़िर भी, पिछले पाँच साल के नये शोधों ने अब लोगों को कम वसा/शर्करा भोजन (low carb diet) के बारे में पुर्वाग्रह ग्रस्त नजरिए को बदलने के बारे में सोचने की तरफ़ ईशारा कर दिया है। आजकल, मिशेल लाजर, एम०डी० (निदेशक, मधुमेह संस्थान, पेन्सिलवानिया विश्वविद्यालय) और एलन स्नीडर्मन एम०डी० (कार्डियोलोजिस्ट, मैक्गिल युनिवर्सीटी) जैसे वैज्ञानिक टौब्स के निष्कर्षों को बड़ी गंभीरता से ले रहे हैं।
टौब्स अपने विचारों को "एक वैकल्पिक सिद्धान्त" के रूप में देखते हैं कि आखिर हम मोटे क्यों होते हैं। इसके बाद, पूरे आत्मविश्वास से भर कर वो बताते हैं कि उनके विचार हीं "लगभग पूरी तरह से" सही हैं। टौब्स अपने स्वास्थ्य संपादक लीसा डेविस के साथ बैठ कर रीडर्स-डायजेस्ट से अपनी बात बाँटी है।
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