Re: इनसे सीखें जीने का अन्दाज़
कुप्रथा के खिलाफ ‘ग्रेस’ ने जीती जंग
अंजली, तिरूपथम्मा और ऐसी ही कई लड़कियों की अंधेरी जिंदगी में ग्रेस निर्मला एक आशा की किरण बनकर आई। आंध्रप्रदेश की रहने वाली निर्मला तेलंगाना में उन किशोरियों को बचा रही हैं जिनके जीवन में जोगिनी बनना तय था। उन्होंने इन लड़कियों को स्वयं द्वारा वर्ष 1993 में स्थापित एक वॉलिन्टियरी संगठन ‘आश्रय’ में पनाह दी। दरअसल आंध प्रदेश में दलित लड़कियों को जोगिनी बना कर देवता या देवी को समर्पित कर दिया जाता है और फिर गांव के उच्च जाति के या प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा उनका यौन शोषण किया जाता हैं। हालांकि सदियों पुरानी यह पराम्परा कानूनन अपराध है लेकिन फिर भी इसे जड़ से खत्म करने के लिए अभी बहुत प्रयासों की जरूरत है। ग्रेम द्वारा चलाया गया ‘आश्रय’ संगठन आंध्रप्रदेश के नौ जिलों में बेहतरीन काम कर रहा है। ‘आश्रय’ के जरिए दबी-कुचली महिलाओं को इस योग्य बनाया गया कि वह एक साथ इकट्ठा होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद कर सक ती हैं। ग्रेस एक गृहिणी थी और वर्ष 1990 में पार्ट-टाइम पढ़ाने का काम करती थी। उन्हें अपने पति निलैय्या से जोगिनियों की दुर्दशा के बारे में पता चला था क्योंकि उनके पति निजामाबाद जिले में जोगिनियों की आर्थिक स्थिति पर रिसर्च कर चुके थे। यह सुन कर ग्रेस ने तुरंत मन बना लिया कि उन्हें इन लड़कियों के उद्धार के लिए कुछ करना है। उन्होंने बताया कि उन्हें जोगिनियों के लिए उत्कोर गांव से काम करना शुरू किया तो देखा कि ईश्वर में उनकी आस्था और अंधविश्वास बहुत पक्का है। उन्होने सबसे पहले उस गांव में एक रहवासी स्कूल चलाने की शुरुआत की। पति के समर्थन से वह परिवार सहित महबूबनगर आ गई और यहां उन्होंने अपने बच्चों को बाकी दलित बच्चों साथ पढ़ाया। उन्होंने अपने बच्चों की तरह बाकी बच्चों को भी पाला-पोसा। जब उन्हें शिक्षित किया तो उनकी काउंसलिंग की और उन्हें प्रेरित किया कि वह जोगिनी बनने से इंकार करें। शुरुआत में यह बहुत ही कठिन था क्योंकि न तो लड़कियां और न ही उनके माता-पिता उनको गम्भीरता से लेते थे। चाहे वह बुरी ही क्यों न हो या अंधविश्वास पर आधारित ही क्यों न हो, लेकिन लम्बे से चली आ रही पराम्परा के विरोध में खड़ा होना पहाड़ को लांघने जितना ही कठिन काम था। फिर भी वह अपने निश्चय पर दृढ़ थी। वह महबूबनगर में दलित महिलाओं की एक वर्कशॉप में जोगिनी हाजम्मा से मिली। इसी के साथ वह जोगिनी लक्ष्म्मा, देवेंद्रम्मा, पापम्मा और क्षितिम्मा के संपर्क में आई और उन्होंने इस सभी का एक कोर ग्रुप बनाया। इस सभी ने आगे आने का साहस इसलिए जुटाया ताकि वह दूसरी लड़कियों को जोगिनी बनने से और उस अपमान को सहने से बचा सकें जिसे अब तक वह सहती आई हैं। उन्होंने आवाज उठाई और वे सफल हुई।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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