Re: मोटु-पतलु (लोटपोट)
आपने बचपन की यादें ताज़ा करदी, शयद जितना मज़ा कॉमिक्स में आता था उतना कार्टून में नहीं आता, खैर ये तो अपनी अपनी पसंद भी हो सकती है, हो सकता है आज के बच्चो को कॉमिक्स से ज्यादा अच्छे कार्टून लगते हो. पर बचपन की यादो की बात ही कुछ और होती है, शायद ही किसी प्रकाशक की कॉमिक्स हमसे छुटती हो, राज कॉमिक्स से लेके डायमंड तक लोट पॉट से लेके परमाणु सीरीज तक सब अपने कलेक्शन में थे,नानी के घर जाने का एक बहाना ये भी था की मम्मी रेलवे स्टेशन पर कॉमिक्स दिलवाएगी और लौटते वक़्त मामा या नाना दिलवाएँगे
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