Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
मैं भी रफ़ी साहब और साथ में लता जी का बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ. आज भी मेरे मोबाईल और लैपटॉप में इस दोनों महान गायकों के सबसे ज्यादा गीत मौजूद हैं. मगर दुःख इस बात का हमेशा रहा हैं की इस दोनों महान गायकों ने साथ साथ गाने बहुत कम गाये. इन दोनों गायकों के बिच रॉयल्टी को लेकर काफी विवाद हुए, जो इन दोनों के बिच में एक दरार उत्पन्न कर दिया. और शायद यही सबसे बड़ी वजह रही इसके बाद आने वाली समय में साथ साथ ना गाने की.
उस समय फ़िल्म निर्माता कुछ बड़े संगीतकारों को उनकी फ़ीस के अलावा संगीत की रॉयल्टी का पाँच प्रतिशत हिस्सा भी दिया करते थे। लता जी की मांग थी कि इस पाँच प्रतिशत में से आधा हिस्सा पार्श्वगायक को मिलना चाहिए। उस समय पुरुष पार्श्वगायकों मे रफ़ी साहब अग्रणी थे –इसलिए लता जी ने रॉयल्टी के मुद्दे पर उनसे समर्थन की मांग की। रफ़ी साहब का कहना था कि गीत गाने के लिए उनकी फ़ीस मिल जाना ही उनके लिए काफ़ी था –वे रॉयल्टी में हिस्सा नहीं चाहते थे। रफ़ी साहब से समर्थन का नही मिलना लता जी को अच्छा नहीं लगा। फ़िल्म माया के गीत “तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है” की रिकॉर्डिंग के दौरान लता जी और रफ़ी साहब के बीच गीत के बोलों को लेकर बहस हो गई और रॉयल्टी के मुद्दे के कारण पहले से ही आहत लता जी ने रफ़ी साहब के साथ गीत गाने से मना कर दिया। इस पर रफ़ी साहब ने भी कह दिया कि लता के साथ गाने की उनकी इच्छा केवल उतनी ही है जितनी लता के मन में उनके साथ गाने की इच्छा है। परिणामस्वरूप इन दोनों महान कलाकारों ने कई वर्ष तक कोई गीत साथ में नहीं गाया। आखिरकार दोनों के बीच 1967 में सुलह हुई और दोनों ने मिलकर फ़िल्म ज्यूल थीफ़ का गीत “दिल पुकारे आ रे आ रे” गाया।
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