Re: शायरी में मुहावरे
जो गरजते हैं वो बरसते नहीं
सर-ए-मिज़गां ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं
ये सच है जो गरजते हैं वो बादल कम बरसते हैं
(शाह नसीर / Shah Nasir / 1756 - 1838)
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तीर-तुक्का
अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए
फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा......वजीर हो जाए
(पापुलर मेरठी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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