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Originally Posted by gulluu
जी हाँ ,जल्दबाजी में कुछ न कह कर सर्पप्रथम हम ये देखने चाहेंगे की आप क्या कहना चाहते हैं ,फिर सब सदस्यों से अनुरोध करूँगा की वो अपने विचार प्रकट करें, शायद आपकी प्रथम प्रविष्टि आपके इस सूत्र की भूमिका मात्र थी ,लेकिन भूमिका ही इतनी विचारोतेजक और टिपण्णी आग्रहशील थी की हमारे माननीय वरिष्ट सदस्य खुद को रोक नहीं पाए .
आपकी प्रविष्टियों का स्वागत है .
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गुल्लू जी के आर्शीवचनोँ से अभिभूत हूँ और कृतज्ञतापूर्वक उनके अपार स्नेह के प्रति अपना आभार व्यक्त करना चाहूँगा । निश्चय ही वह मर्मज्ञ हैँ और विषय का मर्म समझकर नवागन्तुकोँ को प्रोत्साहित करने की कला मेँ सिद्धहस्त हैँ ऐसी ही कला की बानगी मेरे सम्मुख पूर्व मेँ अनिल शर्मा जी के रूप मेँ नमूदार हुई थी जिनके कौशल का मैँ आजतक मुरीद हूँ । हाँ , अरविन्द जी की सदाशयता और नेकनीयती के फलस्वरूप सूत्र संचालन का अभयदान मिल जाना मेरे लिए कम विस्मयकारी नहीँ है , मैँ उनका भी कृतज्ञ हूँ ।उनके वरदहस्त से अब मैँ भयमुक्त हो चला हूँ लेकिन मैँ उनसे कहना अवश्य चाहूँगा कि पीड़ा और वेदना जैसी भावनाओँ की कोई सांख्यिकी नहीँ होती । पीड़ा एक मामिँक अनुभूति है जिसका सीधा सम्बन्ध दिल से है जिसे आँकड़ोँ मेँ अभिव्यक्त करने का पैरामीटर आजतक नहीँ बनाया जा सका है । अन्त मेँ , जलवा जी आप मेरे वरिष्ठ हैँ और आपका परामर्श मेरे लिए आदेशतुल्य है ।