Re: मेरी रचनाएँ-3- दीपक खत्री 'रौनक'
वो कहते है ये जीस्त कितनी हसीन है
हमे लगता है ये तो स्वचालित मशीन है
वो कहते है यहाँ हर लम्हा बड़ा अजीज है
हमें लगता है यहाँ हर लम्हा ग़मगीन है
वो कहते है हल्के हल्के मे गुजार दो इसे
हमें लगता है इसे जीना जुर्म संगीन है
वो कहते है मजा तो इन्तेजार मे ही है
हमें लगता है ये सजा बहुत हसीन है
वो कहते है हुश्न को हक है सताने का
हमे लगता है ये बहाना-ए-गम बेहतरीन है
वो कहते है नुमाइश जरुरत है जीस्त की 'रौनक'
हमें लगता है उनका दिमाग बड़ा ज़हीन है
दीपक खत्री 'रौनक'
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