Re: इधर-उधर से
रूसी अंतरिक्ष यान सोयूज़ 2
आज के दिन का अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक विशेष स्थान है. साठ वर्ष पूर्व आज ही के दिन यानी 3 नवम्बर सन 1957 को रूस (उस समय सोवियत रूस) ने अपना दूसरा अंतरक्ष यान सोयूज़ 2 अंतरिक्ष में भेजा था. इसकी खासियत यह थी कि इसमें पहली बार किसी प्राणी को मानव निर्मित उपग्रह में बैठा कर अन्तरिक्ष में भेजा गया था. यह प्राणी दरअसल एक कुतिया थी जिसका नाम लाईका था. यद्यपि पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाते लगाते ही उसकी मौत हो गई थी फिर भी उसका नाम उस इतिहास से जुड़ गया है जो अंतरिक्ष की खोज में मील का पत्थर साबित हुआ.
हम लोग उन दिनों उत्तर प्रदेश (आजकल उत्तराखंड) के हल्द्वानी शहर में रहते थे. मेरे पिता वहां कत्था मिल में इंजीनियर थे. सभी लोगों में इस रूसी अंतरिक्ष यान के बारे में बहुत जिज्ञासा थी और उत्सुकता थी की रात को उस यान को आकाश में देखा जाए. हालांकि उस छोटे से अन्तरिक्ष में तारों के झुरमुट में देख पाना और पहचान पाना आसन नहीं था फिर भी मुझे अच्छी तरह याद है कॉलोनी के सभी लोग रात को अपने अपने घरों से निकल कर बाहर आ जाते थे और आकाश में टकटकी लगा कर ऐसे देखते थे जैसे हवाई जहाज की तरह से उन्हें वह अंतरिक्ष यान दिखाई दे जाएगा.
सब लोगों के साथ मैं भी तारों भरे आकाश को देख रहा था. उन दिनों प्रदूषण की समस्या नहीं थी इसलिए आसमान साफ़ नज़र आता था. इतने में लोगों ने देखा कि सैंकड़ों तारों के बीच एक तारा एक दिशा से चलता हुआ दूसरी दिशा में बढ़ता जा रहा था. यह दृश्य लगभग 3-4 मिनट तक सब लोग देखते रहे. उसके बाद वह क्षितिज की ओर जा कर नज़रों से ओझल हो गया. अब वह वास्तव में क्या था, कह नहीं सकते. लेकिन वहां उपस्थित सभी को विश्वास था कि जो कुछ उन्होंने देखा वह रूसी अंतरिक्ष यान ही था.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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