Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
(एक अन्य कोण से कर्ण की कथा)
आज मुझे अपने जन्म की कथा याद आ रही है। मैं अपने माँ के अंक में हूँ। एक सुंदर स्वस्थ शिशु जो अलंकारों से सज्जित है। ऐसे काम्य, सुंदर और स्वस्थ शिशु को देख कर माँ की आँखों में प्रसन्नता क्यों नहीं है? क्यों वह अचरज भरी आँखों से मुझ को देख रही है। अश्रु उसके ग्रीवा तक बह रहें है। फिर उसी माँ ने मुझे एक सुंदर मखमल युक्त पेटी में गंगा में प्रवाहित कर दिया।
मुझे मालूम था कि मैं अर्जुन से श्रेष्ठ हूँ। अतः मैंने अर्जुन को ललकारा। पर यहाँ मेरे योग्यता का सम्मान नहीं हुआ। कृपाचार्य ने मेरे राज्य और वंश पर प्रश्न चिन्ह लगाए। मैं एक सूत-पालित पुत्र मात्र था। मात्र राजा या राज पुत्रों का ऐसे आयोजन में भाग लेने की परंपरा रही है। मेरी आँखों में अश्रु कण छलक आए। पर वहाँ कोई नहीं था मेरे हृदय की कातरता को समझनेवाला। सामने सिहांसनारूढ़ माता कुंती तो जानती थी मेरा गुप्त परिचय। मेरे पिता, नभ स्वामी सूर्य तो पहचानते थे मुझे। पर वे चुपचाप चमकते रहे गगन में। मेरे माता-पिता सब जान कर मौन रहे, मेरा दुख और अपमान देखते रहे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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