Re: Malika-e-Gazal Begum Akhtar
मलिका-ए-ग़ज़ल बेग़म अख्तर
सिगरेट की तलब
बेगम अख़्तर चेन स्मोकर थीं. एक बार वो ट्रेन से सफ़र कर रही थी. देर रात महाराष्ट्र के एक छोटे से स्टेशन पर ट्रेन रुकी. बेगम प्लेटफ़ॉर्म पर उतरीं.
उन्होंने वहाँ मौजूद गार्ड से कहा, ''भैय्या मेरी सिगरेट ख़त्म हो गईं है. क्या आप सड़क के उस पार जाकर मेरे लिए कैप्सटन का एक पैकेट ले आएंगे.'' गार्ड ने सिगरेट लाने से साफ़ इंकार कर दिया.
बेगम अख़्तर ने आव देखा न ताव. फ़ौरन गार्ड के हाथों से उसकी लालटेन और झंडा छीना और कहा कि ये तभी उसे वापस मिलेगा जब वो उनके लिए सिगरेट ले आएंगे. उन्होंने सौ का नोट उस गार्ड को पकड़ाया. ट्रेन उस स्टेशन पर तब तक रुकी रही जब तक गार्ड उनकी सिगरेट ले कर नहीं आ गया.
सिगरेट की वजह से ही उन्हें 'पाकीज़ा' फ़िल्म छह बार देखनी पड़ी थी. हर बार वो सिगरेट पीने के लिए हॉल से बाहर आती और जब तक वो लौटतीं फ़िल्म का कुछ हिस्सा निकल जाया करता. अगले दिन वो उस हिस्से को देखने दोबारा मेफ़ेयर हॉल आतीं. इस तरह से उन्होंने 'पाकीज़ा' फ़िल्म छह बार में पूरी की.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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