Re: कुतुबनुमा
इस्तीफों की महत्वाकांक्षाएं
राजस्थान भाजपा में भूचाल आया हुआ है। महत्वाकांक्षाएं आपस में टकरा रही हैं। ढाई-तीन साल पहले की राजनीति एक बार फिर शुरू हो गई है। ऐसे में राजनीति के जानकारों को कर्नाटक के पुराने मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा की शतरंज की चालें याद आ रही हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया की मेवाड़ में प्रस्तावित 28 दिन की जनजागरण यात्रा पर फैसला लेने के लिए शनिवार शाम बुलाई गई पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में अपनी दाल गलती नहीं देखकर वसुंधरा राजे ने जिस तरह बिफरते हुए पार्टी से इस्तीफे की धमकी दी, उससे साफ जाहिर हो गया कि वे अपने सामने प्रदेश में किसी का राजनीतिक कद बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहती। हालांकि कटारिया ने अपनी यात्रा वापस लेने की घोषणा कर दी, लेकिन इसके बाद जो भाजपा में जो राजनीतिक खेल शुरू हुआ है, उसके कई मायने हैं, जिनके दूरगामी असर दिखाई देंगे। रविवार को भाजपा विधायकों ने इस्तीफों का जो खेल शुरू किया, वह साफतौर पर आलाकमान पर दबाव बनाने की शतरंजी बिसात है। यह बात राजे के नजदीकी भवानी सिंह राजावत के मीडिया को दिए गए बयानों से भी साफ हो गई कि भाजपा विधायकों ने आगामी विधानसभा चुनाव में राजे कोे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग को लेकर अपने इस्तीफे नेता प्रतिपक्ष को सौपे हैं। इसका मतलब राजे गुट को इस बात को खतरा है कि डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में आलाकमान किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट कर सकता है। राजे गुट के मन में डर समाया हुआ है। उन्हें कटारिया से भी इसी बात का खतरा है, इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों किरण माहेश्वरी के जरिए राजसमंद में हुई पार्टी की बैठक में कटारिया की मौजूदगी में यात्रा के विरोध का डंका बजाया। मामला दिल्ली में आलाकमान के पास पहुंचा तो आलाकमान ने कटारिया की यात्रा की गेंद प्रदेश भाजपा के पाले में डालते हुए 5 मई को कोर कमेटी की बैठक बुलाकर फैसला करने के निर्देश दे दिए। भाजपा के एक धड़े को पहले से ही इस बात का अहसास था कि कोर कमेटी की बैठक शांतिपूर्ण तरीके से नहीं होगी, इसमें कोई न कोई अनहोनी जरूर होगी। वसुंधरा राजे ने शनिवार रात जो बगावती तेवर दिखाए, वह कोई नई बात नहीं है। वे पहले भी येदियुरप्पा की तरह आलाकमान को आंखें दिखा चुकी हैं। ढाई-तीन साल पहले वसुंधरा राजे को आलाकमान ने जब नेता प्रतिपक्ष के पद से हटा दिया था, तब भी राजे ने पार्टी को अलग-थलग कर इसी तरह के बगावती तेवर दिखाए थे। बाद में भाजपा के कमजोर आलाकमान ने राजे को फिर से नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठा दिया। किसी राजनीतिक दल में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी नेता को पद से हटाकर कुछ दिन बाद वापस उसी पद पर बैठा दिया गया। बहरहाल, वसुंधरा राजे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते अब फिर से दबाव की राजनीति कर रही हैं। इससे उन्हें क्या फायदा और नुकसान होगा, यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन इससे यह बात साफ नजर आ रही है कि पार्टी नेताओं में आपसी कलह कम होने के बजाय और बढ़ेगी और इसका नुकसान भाजपा को ही उठाना पड़ेगा।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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